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अनामंत्रित (कहानी)


‘‘पापा! जरा इधर तो आइये? मिथिलेश्वर अंकल ने आज सोशल-मीडिया पर ताशी दीदी की शादी की जो ये बाइस-तेइस तस्वीरें पोस्ट की हैं, उन्हें जरा गौर से देखिये? ताशी दीदी की शादी में तो हम सभी लोग गये थे। लेकिन किसी भी फोटो में आप, मम्मी या मैं, कहीं भी नहीं दिख रहे। ताशी दीदी ने जयमाल के बाद, अपनी सहेलियों संग जो फोटो सेशन कराया था, उसमें तो मैं भी तीन-चार जगह थी। लेकिन वो वाली एक भी फोटो यहां नहीं दिख रही? ये देखिये! मेरे मोबाॅयल में तो, ताशी दीदी संग खिंची गयी दस-बारह फोटोज भी हैं।’’

‘‘हां बेटा! तुमने ठीक गौर किया। हम लोग तो किसी भी फोटो में नहीं हैं। ये तो वाकई आश्चर्यजनक बात है।’’

‘‘और बाकी कुछ अंकल जी, ये एस.पी. अंकल, ये इंजीनियर अंकल, ये डाॅक्टर अंकल, और जरा ये गायिका सुषमा आण्टी जी की भी पोस्ट देखिये? इन लोगों ने भी शादी-समारोह की तस्वीरें अपने-अपने वाॅल पर पोस्ट की हैं, लेकिन उनके भी किसी पोस्ट में हम लोग नहीं दिख रहे हैं?’’

‘‘बड़ी अजीब बात है। बच्चों की ग्रुपिंग में एक फोटो ऐसी जरूर है, जिसमें तुम हो। हम लोग तो सचमुच कहीं नहीं दिख रहे हैं? क्या वजह हो सकती है? खैर...अभी तुम जाओ। अगले हफ्ते से तुम्हारे इग्जैम्स शुरू होने वाले हैं। अपनी पढ़ाई की तरफ ध्यान दो। मैं देख रहा हूं, आजकल तुम्हारे हाथ में हर वक्त ये स्माॅर्ट-फोन रहता है। अगर इग्जाम में अच्छे नम्बर लाने हैं तो सोशल-मीडिया से कुछ दिन के लिए दूरी बना लो।’’

सम्यक जी, अब अपनी बिटिया को क्या समझाते? उन्होंने तो उसे सोशल-मीडिया पर अनावश्यक समय बिताने के बजाय पढ़ाई की तरफ ध्यान देने का लेक्चर पिलाते, हल्के झिड़कते, उसे वहां से जाने के लिए कह दिया, लेकिन उन तस्वीरों में उनके परिवार को निग्लेक्ट करने के कारणों पर तो उनके दिलोदिमाग में मंथन चल ही रहा था। देर तक इसके पीछे छुपे कारणों पर अन्तर्गुम्फित से सोचते, भन्नाए, मौन साधे बैठे रहे।

बहरहाल, रूकिये! अगर सम्यक जी अपनी बिटिया को इसके पीछे के कारणों के बारे में नहीं बता पाये, तो क्या हमारा फर्ज नहीं बनता कि हम, आप सभी को उन कारणों के बारे में तफसील से बतायें कि सम्यक जी और उनके परिवार के लोगों की तस्वीरें, सोशल-मीडिया के विभिन्न प्लेटफाॅर्मस् पर साझा की गयी उन पोस्ट्स में क्यों नहीं हैं? जैसा कि हम सब वाकिफ हैं, हर कहानी का मध्य, अंत और शुरूआत होती है, इसकी भी है। हालांकि...इसके लिए कुछ वर्ष पीछे जाकर, फिर वापस आना होगा।

सम्यक जी खाद्य महकमे में इंसपेक्टर हैं। उनकी पत्नी संगीता जी एक सरकारी स्कूल में अध्यापिका हैं। इन दोनों के एक बेटी वैशाली भी है, जो शहर के प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूल में पढ़ती है। बिटिया, पढ़ने-लिखने में शुरू से ही होनहार रही है, लिहाजा उसके मां_बाप को उसे हमेशा ही प्रशासनिक अफसर के रूप में देखने की इच्छा रही। लेकिन बिटिया तो किसी और मिट्टी की बनी हुई थी, उसने उन्हें साफ मना कर दिया। उसकी अभिरूचि प्रशासनिक सेवाओं में जाने के बजाय खुद का स्टाॅर्टअप शुरू करने की थी।

फिलहाल...थोड़ी देर के लिए वैशाली बिटिया को यहीं छोड़ते हैं, और लौटते हैं उसके मां-बाप की तरफ।

सम्यक जी की रूचि, अपने कार्य के साथ-साथ, मित्र-मंडली संग यदा-कदा छिट-पुट सामाजिक कार्यों में भी रही है। उनकी अध्यापिका पत्नी संगीता जी भी कभी-कभार उनके साथ ऐसे कार्यों में प्रतिभाग कर लेतीं, जिससे सम्यक जी और उनकी पत्नी की खासी बड़ी मित्र-मंडली हो गयी। संगीता जी को अध्यापन के साथ-साथ कविताएं लिखने का भी शौक रहा है। यदा-कदा वो अपनी कविताएं, सोशल-मीडिया के विभिन्न प्लेटफाॅर्मस् पर साझा भी करतीं रहती हैं। जाहिर है, उनकी कविताओं को पसन्द करने वालों में उनकी मित्र-मंडली के ही ज्यादातर सदस्य रहते हैं। अमूमन हर कविता पर उन्हें सौ-डेढ़ सौ लाइक्स और पचास-साठ के आसपास कमेंट्स आदि तो मिल ही जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों से लगभग इसी तरह की दिनचर्याओं में उनका जीवन व्यतीत होता रहा। वो और लगभग उनकी पूरी मित्र मंडली ही आभासी दुनिया के भ्रमजाल में व्यस्त रहती। अगर कहा जाय कि योमो, यानी फियर ऑफ मिसिंग ऑउट जैसी किसी मनःस्थिति में आकर किसी तरह की कुंठा ग्रस्त स्थिति में हों, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।

यद्यपि सम्यक जी से मेरी गहरी दोस्ती नहीं है। जान-पहचान ही है। परन्तु एक ही शहर में पोस्टिंग होने के कारण राह चलते बाजार, कचहरी, माॅल, रेस्त्रां या किसी सरकारी दफ्तर आदि में यदा-कदा उनसे मुलाकात हो ही जाती है। काफी पहले वे किसी सज्जन के काम से, उन्हें लेकर मेरे घर भी आ चुके हैं। ड्राइंग-रूम में किताबों की रैक देख कर, पढ़ने-लिखने की मेरी अभिरूचि देखते, पढ़ने वास्ते वे मुझसे कुछ किताबें भी मांग कर ले गये थे। मुझे याद है कि कुछ किताबों संग तो उन्होंने विभिन्न भाव-मुद्रा में मेरे साथ फोटुएं भी खिंचाए थे। किताबों में उनकी रूचि देखते मुझे लगा कि उन्हें भी पढ़ने का शौक है, सो मैंने उन्हें, पढ़कर लौटा देने की शर्त पर, कुछ किताबें दे दी थीं। लेकिन मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि अगले दिन उन्होंने मेरी किताबों संग विभिन्न मुद्राओं में उतारी गयीं वो तस्वीरें सोशल-मीडिया पर साझा करते, मुझसे हुई मुलाकात के बारे में कशीदें काढ़ते, साहित्य की वर्तमान स्थिति पर देर तक चर्चा करने की बातें लिख मारी थीं। जबकि मुझे अच्छी तरह याद है, उन संग मेरी ऐसी कोई बातचीत नहीं हुई थी। उन्होंने कुछ किताबों संग मेरे साथ फोटुएं जरूर खिंचाई थी। हां! बाकी समय वे चाय-बिस्कुट और नमकीन पर ही हाथ साफ करते रहे। कहां साहित्य और कहां की साहित्यिक बातचीत?

चूंकि उनकी आदत थी, जब-तब लोगों से मिलने पर उसे यादगार मुलाकात बताते, सोशल-मीडिया पर तस्वीरें साझा करने की, सो मैंने भी उस घटना को गम्भीरतापूर्वक नहीं लिया। हां, इतना जरूर याद है कि कुछ समय बाद अपनी किताबों की वापसी के सम्बन्ध में याद दिलाने पर उन्होंने मेरी किताबें ये कहते लौटा दी थीं कि...‘भाई साहब, कामकाजी व्यस्तता की वजह से आपकी किताबें पढ़ नहीं पाया।’

बहरहाल, मेरे-उनके विचार मिलते-जुलते नहीं थे, उनकी गतिविधियां, प्राथमिकताएं, सहभागिताएं, ज्यादातर अपने संगी-साथियों तक ही सीमित रहतीं थीं। कुछ मुद्दों को लेकर यदा-कदा उनसे बहस भी हो जाती। फिर मुझे यह अहसास भी था कि उनकी ये गतिविधियां, कवायदें येन-केन-प्रकारेण चर्चा में बने रहने के उद्देश्य से ही थीं। उनके क्रियाकलापों में गम्भीरता कम, दिखावा या प्रदर्शन ज्यादा रहता। जाहिर है, मेरी मंजिल, मुद्दे, मकसद, उनसे भिन्न होने के कारण मेरा उन संग निभ पाना सम्भव नहीं था, सो इन्हीं सब कारणों से मैं उनकी मित्र-मंडली से लगभग बाहर ही रहा।

समय बीतने के साथ-साथ स्वाभाविक तौर पर उनकी मित्र-मंडली भी शनैः शनैः बढ़ती रही। बताता चलूं, उनकी मित्र मंडली में ज्यादातर सेवारत, सेवानिवृत्त, विभिन्न पदों पर रह रहे, रह चुके प्रशासनिक अधिकारी आदि ही थे। कालान्तर में उनकी मित्र मंडली में कुछ पुराने, नये जनप्रतिनिधिगण और शहर की नामी-गिरामी हस्तियां, कुछ सेलिब्रिटीज आदि भी शामिल होतीं गयीं। ऐसा विश्वास के साथ इसलिए भी कह रहा हूं कि वो अपनी मित्र-मंडली के साथ जब भी कहीं किसी फंक्शन आदि में होते, बीते दिनों किसी मित्र से मिले होते, परिवार संग पिकनिक पर गये होते या मेट्रो-ट्रेन, चिड़ियाघर में बाल-ट्रेन, नाव आदि की सवारी किये होते, तो यादगार के लिए हर किसी मौंके पर प्रायः उन संग, उनके और अपने पारिवारिक सदस्यों संग ली गयी ढ़ेरों तस्वीरें, सेल्फी आदि सोशल- मीडिया के विभिन्न प्लेटफाॅर्मस् पर साझा जरूर करते।


कभी-कभी तो ये मित्र-मंडली, शहर से दूर किसी रिसोर्ट में देर रात तक पार्टियां आयोजित करते, गप्पे मारते, लेडीज-संगीत कार्यक्रम आदि में नाचनेे-गानेे-थिरकने के वीडियो-क्लिप्स, यहां तक कि अपने बचपन की बातें, तस्वीरें, उनसे जुड़ी धुंधली यादें भी यदा-कदा सोशल-मीडिया पर इस तरह साझा करते मानो इनके बीच वर्षों पुरानी गाढ़ी दोस्ती हो।

ऐसा उनके मित्रगण भी करते थे, लेकिन उन संग खींची गयी तस्वीरें, सेल्फी आदि सोशल- मीडिया पर पोस्ट करने में सम्यक जी कुछ ज्यादा ही उत्साह दिखाते थे। सम्यक जी आखिर थे तो इंसपेक्टर ही, लेकिन उनकी मित्र-मंडली के लोग, जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, बड़े अधिकारी या शहर, प्रदेश के गणमान्यजन भी थे। जाहिर है, उन लोगों की पत्नियां और बच्चे भी खुद को उसी अनुसार, बड़ी पदवी वाले या सेलीब्रिटी आदि ही समझते थे।

विगत सात-आठ वर्षों में हुआ ये कि सम्यक जी तो इंसपेक्टर पद पर ही रह गये। लेकिन समय बीतने के साथ-साथ उनकी मित्र-मंडली में जो अधिकारी वर्ग से थे, वे सभी अपने-अपने विभागों में पदोन्नति पाते गये। अन्य गणमान्यजन भी अपने-अपने क्षेत्रों में तरक्की करते गये। साथ ही उन सभी के बच्चे भी ऊंची कक्षाओं में पहुंचते रहे।

शुरूआती वर्षों में सम्यक जी को ये सब बहुत अच्छा लगता था। सम्यक जी की बच्ची वैशाली ने भी मित्र-मंडली के सदस्यों के बच्चों संग ही प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ाई की। साप्ताहिक छुट्टियों में या यदा-कदा किसी कार्यक्रम आदि में जब ये मित्र-मंडली आपस में मिलती-जुलती, तो इन सदस्यों के बच्चे भी आपस में हंसते-बोलते-खेलते।

स्कूली दिनों के बाद मित्र-मंडली में सभी सदस्यों के बच्चे अपने-अपने माता-पिता की इच्छाओं या अपनी अभिरूचि के अनुसार इंजीनियरिंग, मेडिकल या अन्य स्ट्रीम आदि में कैरियर बनाने हेतु शहर के प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट में, तो कुछ बच्चों ने उच्चशिक्षा के लिए अन्य शहरों का रूख किया। वैशाली ने शहर के विश्वविद्यालय में बी.ए. में एडमिशन लिया।

चूंकि मित्र-मंडली के सदस्यों के ज्यादातर बच्चे अन्य शहरों में रहकर उच्चशिक्षा ग्रहण कर रहे थे, जिससे अब उनके नये-नये मित्र भी बन गये थे। ऐसे में किन्हीं कार्यक्रम आदि में मित्र-मंडली के मेल-मिलाप के अवसर पर सम्यक जी की बच्ची वैशाली संग, मित्र-मंडली के सदस्यों के बच्चों का रवैया अब वैसा नहीं रह गया, जैसा कि स्कूली दिनों में था। जाहिर है, कुछ सामाजिकतावश या अनजान कारणोंवश, मित्र-मंडली के सदस्यों की पत्नियों के तेवर भी सम्यक जी की पत्नी संगीता जी के प्रति बदलती गयी।

स्वाभाविक है कि मित्र-मंडली के बड़े ओहदे वालों, सेलिब्रिटीज आदि की प्रभुवर्ग की भाषा, उनके बात-व्यवहार से सम्यक जी कभी-कभी असहज भी हो जाते। लेकिन पता नहीं किस मोहाविष्ट के चलते वे अपने मान-सम्मान की परवाह किये बिना, मित्र-मंडली से दूरी बनाये रखने के बजाय उनसे जुड़े रहने के ही हिमायती रहे। हालांकि, बातचीत में यदा-कदा उनके मुंह से इनकी वजहें भी निकल आतीं कि...‘बड़े लोगों से दोस्ती रखने में फायदा-ही-फायदा है। पता नहीं कौन, कब, किस भेष में मददगार साबित हो जाये?’

समय बीतते, वक्त बदलते, भला देर कहां लगती है? जिनके साथ सम्यक जी, हंसते- मुस्कुराते- बोलते_ बतियाते, पार्टियां अटेण्ड करते, तस्वीरें खिंचाते, उन्हें सोशल-मीडिया के विभिन्न प्लेटफाॅर्मस् पर साझा करते रहते, अब वो मंजर बदल चुका था।

सम्यक जी को याद है कि अभी लगभग महीना-भर पहले ही उनकी मित्र-मंडली के सदस्य परमेश्वरन जी, जो कि पुलिस अधीक्षक हैं, ने अपनी शादी की पच्चीसवीं सालगिरह मनाई, लेकिन उस समारोह में उन्होंने सम्यक जी को आमंत्रित नहीं किया। मित्र-मंडली के ही एक अन्य सदस्य आई.ए.एस. अधिकारी तरूण प्रकाश जी ने अपने गृह-प्रवेश के मौंके पर भी सम्यक जी को नहीं बुलाया। इन कार्यक्रमों की जानकारी उन्हें तब मिली, जब परमेश्वरन जी और तरूण प्रकाश जी ने उन समारोहों की तस्वीरें सोशल-मीडिया पर साझा कीं। यद्यपि उन्होंने बुझे मन से उन पोस्ट्स को लाइक करते, मित्र-मंडली के सदस्यों को बधाइयां दे दी थीं। प्रत्युत्तर में उन लोगों ने सिर्फ लाइक का ही बटन दबाया था, मानो औपचारिकता निभाई हो। जबकि उनके द्वारा अन्य लोगों को बाकायदे आभार प्रकट करते, धन्यवाद भी ज्ञापित किया गया था।

इन्हीं सब कारणों के मद्देनजर सम्यक जी ने महसूस किया कि इधर कुछ समय से उनकी मित्र-मंडली के सदस्यों का व्यवहार, उनके और उनके परिवार के प्रति अभूतपूर्व तरीके परिवर्तित हो गया है। इधर बीच ऐसे ढ़ेरों मौंके आये, जिनमें वे मित्र-मंडली के बीच शनैः शनैः खुद को बेतरह उपेक्षित पाते रहे। इस तरह, सम्यक जी और उनका परिवार अपनी मित्र-मंडली के लिए कब अवांछित हो गया...वे जान ही नहीं पाये।

बेटी के प्रश्न पर तो उस दिन वो भकुआ कर रह गये। जब सम्यक जी की मित्र-मंडली के ही एक सदस्य, मिथिलेश्वर जी, सेवानिवृत्त मजिस्ट्रेट साहब की पोती, ताशी की शादी में वे सपरिवार शामिल हुए थे। उस अवसर पर पूरी मित्र-मंडली जमा थी। सभी अपनी-अपनी यादें ताजा करते, उठते-बैठते, खाना खाते, सिंगल और ग्रुप में, विभिन्न एंगल्स से तस्वीरें खीचते-खिंचवाते पाॅर्टी का लुत्फ ले रहे थे। लेकिन पता नहीं क्यों, जब तस्वीरें लेने की बात आती, तो मित्र-मंडली के सदस्य, उनकी पत्नियां, यहां तक कि उनके बच्चे भी, सम्यक जी और उनके परिवार से किनारा करते, कतराने लगते। यहां तक कि बहुत आनाकानी के बाद, ताशी ने भी वैशाली के साथ सिर्फ एक या दो फोटो ही खिंचवाया था। ये अलग बात है कि उस अवसर पर यादगार के लिए वैशाली ने ही अपने स्माॅर्ट-फोन से दस-बारह फोटो खींचे थे।

हद तो तब हो गयी, जब उनकी मित्र-मंडली के कुछ सदस्यों ने इस शादी-पाॅर्टी की तस्वीरें सोशल-मीडिया पर साझा कीं। सम्यक जी और उनका परिवार उन तस्वीरों में कहीं भी नहीं दिख रहा था। बच्चों की ग्रुपिंग में एक फोटो ऐसी जरूर दिखी, जिसमें वैशाली बिटिया उपस्थित थी, लेकिन उनकी पत्नी संगीता जी तो किसी भी फोटो में नजर नहीं आयीं। सम्यक जी ने ध्यान दिया कि उनके पूरे परिवार को लगभग हर तस्वीर में क्राॅप कर दिया गया था।

मजे की बात यह थी कि उस विवाह समारोह में मैं भी आमंत्रित था। कारण कि मिथिलेश्वर जी विश्वविद्यालयीय दिनों में हाॅस्टल में मेरे रूम-पाॅर्टनर रह चुके थे। लेकिन, घर में शादी होने के कारण उनकी व्यस्तता और इस मित्र-मंडली का सदस्य न होने के कारण मेरे पास वहां उपस्थित लोगों संग बोलने_ बतियाने या हास-परिहास के सीमित अवसर ही थे। फिर, अकेले होने की वजह से मेरा वहां मन भी नहीं लग रहा था। ऐसे में, वर-वधू को आशीर्वाद देते, नाश्ते के बाद थोड़ी देर तक विवाह कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने, वहां उपस्थित लोगों की गतिविधियों से दो-चार होने के उपरान्त मैं अपने घर लौट आया था।

खैर...। वो कहते हैं न कि मुंह से बड़ा कौर उठाने, चादर से बाहर पांव फैलाने की अपनी जगजाहिर दिक्कतें तो हैं ही। फिर जैसा हम सोचते हैं, वैसा हमेशा होता ही कहां है? बात बस्स् इतनी सी है। देखा जाय तो...इस बिन्दु पर आकर, ये कहानी खत्म हो जानी चाहिए। लेकिन सम्यक जी को कौन समझाये...?

-रामनगीना मौर्य, लखनऊ 

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