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नया दर्पण (लघु कथा)


आज ज्यों ही विद्यालय से घर आई बेटा सुधीर आकर बोला-- बिल पास हो गया !
...क्या ?
... मां,महिला बिल पास हो गया!
... वाह ,सच्ची !
दोनों बैठकर घंटों टेलिविजन पर नजरें गड़ाए रहे ,सुनते रहे। देख तो मैं भी रही थी लेकिन बात-बात में सुधीर का महिलाओं के पक्ष में बोलना मुझे गद-गद कर रहा था।
..."मां आप बैठो मैं गरमा- गरम कॉफी बना कर लाता हूं!"
...' जरुर ,... मदद लगे तो बताना!
अकेली बैठी देखती रही ,सुधीर की हर उस भावना को महसूस कर रही थी कि इतने में..
" मां काफी.." .'सचमुच इस बिल का यदि अच्छे से लागू किया गया तो लड़कियों के लिए एक सुनहरा मौका बनकर सामने आएगा, जिन स्थानों पर लड़कियों की नगणय संख्या थी ,वहां लड़कियों की उपस्थिति पूरी सिस्टम को बदल देंगी।
... हां बेटा, तुम देखना लड़की यदि किसी मैटर को पेश करती है तो पूरी तरह से कूरेद कर, समझ कर अप्रत्यक्ष पहलुओं को भी सामने लाती है ,लेकिन वहीं यदि एक पुरुष द्वारा किया जाता है तो गंभीरता की कमी तो होता ही है और दोनों में जमीन आसमान का अंतर भी हो जाता है।
...हां मां,मै भी विद्यालय में महसूस करता हूं।
(इतने में सुधीर के पिता का प्रवेश)
.... क्या बात है 33% आरक्षण के बिल को लेकर इतनी दिलचस्पी!
... हां पापा , इससे पूरे भारत के महिलाओं को सम्मान मिलेगा..
... हां बेटा
... (पिता मुस्कुरा कर )पर ये इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है !
...इसकी बीवी भी तो 33% के लिस्ट में आएगी.... मां बोली,
... पापा आप लोग ना..
सचमुच आज मुझे अपने बेटे पर गर्व महसूस हो रहा था । उसकी पत्नी कितनी सौभाग्यशाली होगी जिसकी सोच आज इस उम्र में इतनी अच्छी है तो आगे...
..... लेकिन हां ,यह सोच भारत के हर उस नौजवान की होनी होगी,तभी हम अपने देश को एक नया दर्पण दिखाने में कामयाब हो पाएंगे।
...... हां, मगर असली महिला दिवस तो आज होनी चाहिए ।
...हां सचमुच, चलो मां , आज एक पार्टी आपकी तरफ से...

-डोली शाह, हैलाकंदी (असम)


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