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मन अनुरागी हो गया (दोहे)


मन अनुरागी हो गया,चैन नहीं दिन-रात
'सहज' लगे गिरने चला,अभी साख से पात

जग है काली कोठरी,बन जा स्वयं उजास
'सहज' न आएगा कोई, देने तेरे पास

बुझ न जाय उम्मीद का,जलता हुआ चराग
'सहज' सदा निर्भीक रह,सच से कभी न भाग

ज्ञान-ध्यान-जप-तप सभी,तब तक हैं ये व्यर्थ
जब तक दिल से तू नहीं, 'सहज' करे अभ्यर्थ

कभी बुरा सोचा अगर,बुरा स्वयं का होय
'सहज' परोसा विष अगर,सहज दिया सब खोय

@डॉक्टर रघुनाथ मिश्र 'सहज', कोटा

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