कड़वी सच्चाई
एक दिन हम सब बन जाएंगे,
एक बीती तारीख।
पर देकर जाएंगे जीने वालों को,
एक छोटी सी सीख ।।
घर की दहलीज़ पर ,
चादर से बिछ जाएंगे हम।
जब नश्वर देह को,
विदेह कर जाएंगे हम।।
भिंगोयेंगे रूखे सूखे आंसू,
तीन चार सगे अपने।
लौट जाएंगे तीसरा कर,
धंधे पानी मे अपने।।
छोड़ी होगी लाखों की दौलत,
तूने अपने पास में।
धूमधाम से मनेगी तेरहवीं,
लाखों की आस में।।
अगर न होगा तन पर,
कपड़ा कोई ढंग का।
हो जाएगा बंटाधार,
प्यारे तेरे कफ़न का।।
गिनते रहे परवरिश की गलतियां,
सच्चाई पर आंखे है नम।
क्या ममता का पलड़ा था हल्का,
या पिता का प्यार था कम।।
मनाकर मृत्यु भोज का जश्न,
बेटे भतीजे खोजेंगे प्रोपर्टी लाकर की चाबियां।
कैसे करे गहनों की बंदरबाट
सोचेंगी बहुये भाभियां।।
खाली हाथ आकर यहां,
जब खाली हाथ है जाना।
व्यर्थ बटोरता है तू क्या ,
जब सब मिट्टी में मिल जाना।।
चाह मेरी भी यही आखरी,
कुछ नेकी कर जाऊ।
देहदान कर देह का,
एक तो पुण्य कमा जाऊ।।
-अर्चना नायडू,भोपाल (म.प्र.)
1 टिप्पणियाँ
जीवन का कटु सत्य..... बस तारीख बनकर रह जायेंगे
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