Subscribe Us

एक दूजे के लिए


अपनी पत्नी लक्ष्मी के ल़क़वाग्रस्त होने पर नारायण भाई की आंखों में आंसू छलक आए। वृद्धावस्था में यह दारूण दुख नारायणभाई से देखा नहीं जा रहा था। फिर भी वे अपने पड़ोसियों की मदद से लक्ष्मी को हास्पिटल में जाने में सफ़ल हो गये। समय पर चिकित्सा होने से लक्ष्मी को बहुत हिम्मत मिल गयी।बेड पर लेटे लेटे लक्ष्मी ने अपने- पति नारायणभाई की ओर देखा तो उसकी आंखें भी गंगा जमुना बहाने लगी। नारायणभाई ने लक्ष्मी के सिर पर हाथ रख कर उनके बालों को सहलाते हुए कहा - "पग़ली, अभी मैं ज़िंदा हूं, अपने कीमती आंसुओं को क्यों निर्रथक बहा रही हो? "

लक्ष्मी ने कहा - "तुम्हें इस अवस्था में भी मेरे लिए भागदौड़ करनी पड़ रही है, यही मेरे दुख का कारण है।"

" जैसे मैं तुम्हारे मन की बात नहींं समझ रहा हूँ, तुम ऐसी बात करके मेरा मन बहला रही हो। मैं सब समझता हूँ तुम्हारे मन के आकाश में कौनसे बाद़ल उमड़ घुमड़ रहे हैं। " नारायणभाई ने लक्षमी के आंसू अपने रूमाल से पोंछते हुए कहा।

लक्ष्मी ने नारायणभाई की आंखों में ग़हरी निराशा के भाव पढ़ते हुए कहा - "तुम मेरा मन कबसे पढ़ने लगे। मुझे तो आश्चर्य हो रहा है कि तुम मेरे मन की किताब भी पढ़ लेते हो? "

"लक्ष्मी इतने वर्षों से तुम मेरे जीवन में हो और मेरे मन में बसी हुई हो तो क्या मैं तुम्हारे मन की किताब नहींं पढ़ सकता? " नारायणभाई ने कहा तो फीकी मुस्कान के साथ लक्ष्मी बोली - " अच्छा तो बताओ, मेरे मन की किताब में क्या लिखा है..? "

" सच बताऊं..! " नारायणभाई ने मंद मुस्कान बिखेरते हुए कहा।

"अब इस उम्र में झूठ बोलने की गुंजाईश़ ही कहां बची है, जो तुम झूठ बोलोगे। "

" हां, यह बात तो है। ठीक है मैं तुम्हारे मन की बात को जो समझ पा रहा हूँ, वह यह है कि तुम दो दो बेटो की मां और दो दो बहुओं की सास और नाती पोते वाली हो कर भी तुम्हारी इस गंभीर बीमारी की अवस्था में भी कोई सेवा के लिए उपस्थित नहीं हुआ है। इस बात का तुम्हें ग़हरा सद़मा है और मन ही मन इस बात को लेकर घुट रही हो। लेकिन तुम चिंता न करो। हमारे बच्चे हमें छोड़ गये तो क्या हुआ, हम अभी इतने अशक्त भी नहीं हुए हैं कि हम अपना खुद का काम ही न कर सकें। उन बच्चों को आज नहीं तो कल एहसास होगा, जब उनके साथ भी यही सब घटित होगा। हम उन पर दोषारोपण करने के बजाए उनकी सुखद् जिंद़गी की दुआ करें,,कि उन्हें हमारी तरह इस तरह से जिंद़गी न गुजारना पड़े..।

यह सुनना था कि लक्ष्मी की आंखों से अविरल अश्रुपात होने लगे। यह देख कर नारायणभाई भी ग़मगीन हो गये और बोले -" लक्ष्मी, यदि तुम इस तरह से विलाप करोगी तो मेरा क्या होगा? तुम्हारे बल और सामर्थ्य से ही तो मैं भी अभी तक टिका हूं। तुम हिम्मत रखो, संसार में बहुत से हमारे जैसे भी लोग है जिनके सब कोई होते हुए भी वे अकेले रहते हैं। शायद यही हमारे भाग्य में लिखा था। फिर भी हम एकदूसरे के साथ तो है, यही क्या क़म है। शायद विधाता ने हमें एक दूजे के लिए बनाया था..। "

डॉ रमेशचन्द्र, इंदौर

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ