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शंख नाद


विस्मृत स्मृतियों की लहरें
अविरल अश्रु ठहरें
बन रहे मोती
सहज शंख नाद

थे शब्द
सब निःशब्द
जीवंत आज भी सब कुछ
मानस पटल पर टंकित

आर्ध पहर निश्रा संग
बहती कल-कल अश्रु धार
करुणामयी स्नेह
असीम अपार

सम्पूर्ण, सर्वस्व आज भी बलिहार

-डॉ सुरेन्द्र मीणा, नागदा (म.प्र.)

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