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खेल निराले हैं (ग़ज़ल)


सुख - दुख कितने पाले हैं
मन के खेल निराले हैं

उलझा-उलझा रहता है
मन पर मोह के जाले हैं

ऐसे भी हैं लोग यहाँ
तन उजले, मन काले हैं

मन तो चलता रहता है
दिखते पैर में छाले हैं

मन कहने को होता है
पर होंठों पर ताले हैं

नाम ग़ज़ल मत दो इनको
ये तो दिल के छाले हैं

-डॉ अनिल जैन, सागर


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