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आँधियों ने भी छला है फिर (ग़ज़ल)


आस का दीपक जला है फिर

आँधियों ने भी छला है फिर

प्यास फिर से कुलबुलाई है
यह नदी तो निर्जला है फिर

साँझ तक घेरे रहे बादल
और इक सूरज ढला है फिर

है समस्या आज भी वैसी
चक्र बातों का चला है फिर

भूख से सर्जक हुआ व्याकुल
मर रही कोई कला है फिर

जा रहा वह ठोकरें खाता
पुण्य उसका यों फला है फिर

अँगुलियाँ उनकी मचलती हैं
ले 'नलिन' तेरा गला है फिर

-डॉ. नलिन, कोटा (राज.)


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