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ब्रह्मांड (कविता)


इस संपूर्ण ब्रह्मांड में
हमारी पृथ्वी का अस्तित्व
ऊँट के मुँह में
जीरे की तरह नज़र आता है

और
इस पृथ्वी पर
एक इंसान
एक चींटी से अधिक
अहमियत नहीं पाता है

लेकिन
उसी
एक इंसान के अहंकार के सामने
पृथ्वी तो क्या
संपूर्ण ब्रह्मांड छोटा पड़ जाता है

-निरंजना जैन, सागर

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