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चिट्ठी (नवगीत)


आई न चिट्ठी -
बहुत दिनों से ।

पथ जोहते -
ये जीवन बिता ।
द्वारे लगे -
बिन चिट्ठी रीता ।

महकी न मिट्टी -
बहुत दिनों से ।

सुबह से अब न -
हिचकियां आवें ।
मगरे पर अब न -
कागा गांवे ।

हों गई कुट्टी -
बहुत दिनों से ।

भीड़ में कहां -
वे खोई पतियां ।
भर आती थीं -
पढ़ जिन्हें अंखियां ।

नम हैं न पट्ठी -
बहुत दिनों से ।

कभी दु:खों की -
ये ख़बरें लातीं ।
कभी खुशियों के -
ख़त दे जातीं ।

खट्टी न मिठ्ठी -
बहुत दिनों से ।

-अशोक 'आनन' मक्सी

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