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गर्म तवे पर सोच (दोहे)


हुआ जहाँ भी युद्ध है,पढ लेना इतिहास ।
होता वहाँ विनाश है, होता नही विकास।।

बडे बुजुर्गों का कभी, होता नही जवाब ।
जिनके अनुभव से बने,इक जीवंत किताब ।।

गगरी आधी है अगर, लेगी मित्र उछाल ।
कितना भी रख लीजिए,उसको आप सँभाल ।।

किया हमेशा आपने,अगर झूठ ही पेश ।
होगा घेरे मे सदा,शक के सत्य रमेश ।।

रूठों को भी ख्वाब में, ले आती है पास ।
मेरा रिश्ता नींद से, इसीलिए है खास।।

ख्वाबों से मेरा नही,कोई हुआ करार ।
आते है क्यों नींद मे, वो मेरे हर बार ।।

विद्या का खिलता नहीं, बिन गुरु कभी न फूल ।
वृक्ष बढेगा किस तरह, सींचे बिन ही मूल ।।

किया सभ्यता पर अगर,हमने कभी प्रहार ।
उपजेंगें मन में तभी, कलुषित-कुटिल विचार ।।

बंद करो बेहूदगी ,थोंपो नहीं विकार ।
नवयुग की अश्लीलता ,हमें नहीं स्वीकार।।

मिलें जहाँ हर मोड़ पर ,खड़े दुशासन आज ।
कौन द्रोपदी की वहां, बचा सकेगा लाज ।।

होते तो बदनाम हैं,बार-बार ये खार ।
दे जाते हैं फूल पर, जख्म हजारों बार ।।

कैसे फूलें रोटियाँ, गर्म तवे पर सोच ।
गूँथा आटा ही अगर, रखे बिना ही लोच ।।

हुआ बुद्धि से प्रौढ़ इक,जब भी कभी किशोर ।
दीवारें तब सोच की, हुई आप कमजोर ।।

मतलब के बाजार का , ये ही रहा उसूल ।
मकसद तक झुक कर रहो, फिर जाओ सब भूल ।।

छूट गया था वाकई, उस दिन मेरा गाँव ।
बढे शहर की ओर थे, जिस दिन मेरे पांव ।।

मुझसे भी ज्यादा जहर,उगल रहा इंसान ।
यही सोचकर हो रहा, विषधर भी हैरान ।।

सोऊँ भूखा ही अगर,कहूँ कभी मैं साँच ।
झूठ कहूँ ईमान पर,आये मेरे आंच ।।

झूठों को इज्जत मिले,सच्चों को दुत्कार ।
आजादी का देश मे, ये कैसा आधार ।।

करना है जो आपको ,लेना है बस ठान ।
नामुमकिन कुछ भी नही,दुनिया मे इंसान ।।

जहां इरादे हों अडिग, मन मे हो विश्वास ।
नाकामी ठहरे नही, वहाँ कभी भी पास ।।

पेड़ लगाना है हमें, करें सभी हम पाठ ।
आना ही है काम जब, अंत समय पर काठ ।।

जंगल पूरा काट कर,किया अगर जो ठाठ ।
मुर्दे को भी एक दिन, नही मिलेगा काठ ।।

भावी पीढी के लिए, करें काम ये नेक ।
पेड़ लगायें शीघ्र ही,मानसून मे एक ।।

इत देखूंँ परिवार या, उत देखूँ मै देश ।
जीवन के बाजार मे,ऐसा फँसा रमेश ।।

पिछड़ेपन की देश मे,ऐसी चली बयार ।
लगी हुई है होड़ सी , बनने की लाचार ।।

जिसके रहते खो गया,जीवन का अनुराग ।
ऐसी ख्वाहिश का करें,फौरन ही परित्याग ।।

विद्या से बढकर नही, उत्तम और निवेश ।
चाहे जितनी कीजिए, दौलत जमा रमेश ।।

बचकाना हरकत करें,नाजायज व्यवहार ।
लोगों मे उनका रहे, सदा निम्न किरदार ।।

पता नही किस वक्त क्या,दे दें दुष्ट बयान ।
काबू मे जिनकी कभी, रहती नही जबान ।।

करते हो निंदा अगर,रहे हमेशा ध्यान ।
होते हैं तुम मान लो,दीवारों के कान ।।

क्या होंगे उस द्वार के, सोचो तो हालात ।
लौटी हो आकर जहाँ, सजी धजी बारात ।।

-रमेश शर्मा, मुंबई


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