नफ़रतों के जमाने में चलो हम प्यार लाते हैं।
रहे भी एकता सबमें चलो आसार लाते हैं।
मिलेंगे ज़ीस्त में जो भी करेंगे हम तो ग़ुलपोशी,
इरादा सख्त है अपना नहीं हम ख़ार लाते हैं।
हमारी नीयतों में,बेहतरी की बात ही करते,
न कोई ऐब की बातें नहीं अंगार लाते हैं।
सिवा अमनो अमन के बात कोई भी नहीं जंचती,
हमेशा शाद ही रहते वही हर बार लाते हैं।
करेंगे मंज़िलें हासिल नहीं,मत ये समझ लेना,
जमावट है बड़ी,साथी भले दो चार लाते हैं।
नज़र मंज़िल पे है अपनी सफ़र ज़ारी मगर अपना,
करेंगे वो तो हासिल हम यूँ रुख़ दमदार लाते हैं।
हमारे रुख़ इरादों में बुलंदी ले के हम चलते,
इरादे हम कभी दिल में नहीं लाचार लाते हैं।
-प्रदीप ध्रुव भोपाली,भोपाल
0 टिप्पणियाँ