म.प्र. साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा नारदमुनि पुरस्कार से अलंकृत

अब गांधी के वेश में (व्यंग्य ग़ज़ल)


अब गाँधी के वेश में मुस्टण्डा होगा
जेब में कट्टा औ' हाथ में डण्डा होगा।

कई जगहों पे होंगे उसके काले धंधे
चोरों का राजा,तस्कर का पण्डा होगा।

होगा लंबा टीका उसके माथे पर
कंठ में तावीज या बाँह पे गण्डा होगा।

सबको लड़वाकर अब खुश होता है वो
सबसे प्यार जताना हथकण्डा होगा।

जनता का हमदर्द दिखेगा सबको वो
लेकिन सबको उलझाना फण्डा होगा।

मीठी-मीठी चिकनी-चुपड़ी बातें कर
सबको तैश दिलाकर भी ठण्डा होगा।

ढोंग करेगा शाकाहारी होने का
घर में मदिरा मांस सहित अण्डा होगा।

- कमलेश व्यास 'कमल', उज्जैन (म.प्र.)

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