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सब की उम्मीद जगी (गीत)


उसके घर अनाज आया
सब की उम्मीद जगी
अपनी पुस्तक मे लिखते हैं
पंकज रोहतगी

आगे लिखते, लगी झाँकने
छिप छिप आंगन में
सब कुछ छोड़ घरेलू बिल्ली
जो थी प्रवचन में

कुछ कुछ अच्छा ही होगा अब
घर के मौसम में
यह सारे बदलाव देखती
है घर की मुरगी

चिडियाँ मुदिता दिखीं
फूस के छप्पर में अटकीं
दीवारें खुश हुई जहाँ पर
छिपकलियाँ लटकी

लुकाछिपी करती किंवदन्ती
दरवाजे बाहर
देख नहीं पायी पेटों में
कैसी आग लगी

आज समूचे घर में उत्सव
सा माहौल बना
किसी पेड़ का पहले था
जैसे बेडौल तना

वही सुसज्जित , छायादार
वृक्ष में था बदला
जिसने घर की खुशियों में
जोड़ी है यह कलगी

-राघवेन्द्र तिवारी, भोपाल (म.प्र.)


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