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तर्पण (कविता)


मृत्यु उपरांत श्रद्धा भाव से करते हैं,
अपने पितरों का हम मित्रों तर्पण।
पिंडदान और तर्पण से मोक्ष द्वार खुले,
ब्राह्मण भोज दान जल द्वारा पितृ अर्चन।।

पूर्वज हमको लगे मिले देव वरदान।
कर्तव्य ये कहे उन्हे सदा दे मान।।
पुर्वज हमारी धरोहर देते हैं प्यार।
दिन-रात बस सुख चाहे,लगे संसार।।

सपने में आ दर्शाते मुसीबत आने वाली।
खुशी का पल का इशारा दे खुशहाली ।।
पितृपक्ष में तृपन से खुश दे आशीर्वाद है।
कष्ट कोई भी दुआ करे फरियाद है।।

जिनकी कृपा से जन्म मिला हमको।
नमन करे हम सारे शीश झुका उनको।।
एक सृत बस श्रृद्धाभाव मन में सच्चे।
उनको सबसे प्यारे उनके हम बच्चे।।

-अलका जैन 'आनंदी', मुम्बई

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