Subscribe Us

प्यार नफ़रत को (ग़ज़ल)


प्यार नफ़रत को मियां जड़ से मिटा देता है।
प्यार नफ़रत की हरी पौध जला देता है।

कितना ज़ालिम है बमों का ये ज़खीरा जो की,
मौत की नींद हज़ारों को सुला देता है।

मुझको आता नहीं अपनों को पराया करना,
दर्द अपनों को कहीं भी हो रुला देता है।

लोग वाक़िफ़ नहीं है इश्क़ की ताक़त से अभी,
इश्क़ सहरा में भी कुछ फूल खिला देता है।

उनको मालूम नहीं ख़ून का क़तरा गिरकर,
कैसरो किसरा के महलों को हिला देता है।

-हमीद कानपुरी, कानपुर

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ