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पानी के झांसे (नवगीत)


बादल -
पानी बेचते रहे ।

कुएं -
प्यासे के प्यासे रहे ।
पानी के -
सिर्फ़ झांसे रहे ।

चंदन -
ख़ुशबू बेचते रहे ।

पेड़ -
कभी गंध ले न पाए ।
फाहे -
गंध के सुखाए ।

दीये -
बाती बेचते रहे ।

छांव -
धूप को तरसती रही ।
दुपहर -
थर-थर धूजती रही ।

जाड़े -
अलाव बेचते रहे ।

दूब -
चुराकर लाॅन ले गए ।
कैक्टस -
बैठक को दे गए ।

बिरवे -
तुलसी बेचते रहे ।

-अशोक आनन, मक्सी (म.प्र.)


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