Subscribe Us

श्री हनुमान पच्चीसी



श्री गणपति, माँ शारदे, सिया राम धरु ध्यान।
करने बैठा आज मैं, श्री हनुमत गुणगान।।

ज्ञान बुद्धि मुझमें नहीं, करूँ भाव का जाप।
त्रुटि यदि हो जाये कहीं, क्षमा करें प्रभु आप।।

जय हनुमान वीर बजरंगी।
ज्ञान विवेक बुद्धि के संगी।।

वज्र देह लागे अति प्यारी।
शोभा हनुमत सबसे न्यारी।।

अष्ट सिद्धियाँ द्वार खड़ी हैं।
नव निधियाँ तव चरण पड़ी हैं।।

वन में जब आये रघुराई।
भेंट सुग्रीव से करवाई।।

राम नाम जपते तुम वीरा।
जलधि लाँघी गये गंभीरा।।

परख हेतु सुरसा जब आयी।
मुख से निकल सफलता पायी।।

वार लंकिनी पर तुम कीन्हाँ।
श्राप मुक्त उसको कर दीन्हा।।

भेद विभीषण से तुम पायी।
चले वाटिका कर चतुरायी।।

प्रभु मुद्रिका सिय दिखलायी।
शीश नवाँ पुनि धीर बँधायी।।

रौद्र रूप तुमने दिखलाया।
रावण का सब मान घटाया।।

लंका जला असुर बहु मारे।
राम दास तुम सबसे न्यारे।।

सिय का पता लगा जब आये।
राम सहित सबके हिय भाये।।

मूर्छित हुए लखन जब रण में।
लेने गये संजीवन क्षण में।।

कालनेमि का कर संहारा।
द्रोणागिरी हाथ में धारा।।

तंद्रा टूटी लखन जब जागे।
राम चन्द के तुम उर लागे।।

आये साथ अवध रघुनाथा।
जपते रहे राम गुण गाथा।।

जब जब मैंने तुम्हें पुकारा।
आकर तुमने कष्ट निवारा।।

शिव जी के तुम हो अवतारा।
तुमको पूजे यह जग सारा।।

दास्य भाव की सेवा पायी।
कृपा करे तुम पर रघुरायी।।

काल चक्र भी तुम से हारा।
हर युग में है वास तुम्हारा।।

जिसने मन से नाम उचारा।
उसका तुम बन गये सहारा।।

आये द्वारे लेकर आशा।
पूर्ण होय सबकी अभिलाषा।।

सत की राह चले मन प्राणा।
आशीष देउ अब हनुमाना।।

तीनों ताप निकट नहीं आवे।
यह पच्चीसी जहाँ सुनावे।।

टीकम चन्दर हनुमत दासा।
सदा करो उर में तुम वासा।।

संकट मेरे सब हरो, विमल करो मन देह।
दर्शन दो प्रभु अब मुझे,बरसाओं नित नेह।।

।।इति।।

-टीकम चन्दर ढोडरिया, छबड़ा जिला,बाराँ राजस्थान


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ