काहे की चिंता, काहे का ग़म है
प्यारे, यह चुनाव का मौसम है।
बज़ रहे हैं ढोल और बज़ रहे हैंं ताशे
ज़नता को लुभाने के देखलो त़माशे
नेताओं की खुशी ज़नता पर सित़म है
प्यारे, यह चुनाव का मौसम है।
मज़दूरों को मज़दूरी, बेकारों को काम
मिलेगा नाचने गाने वालों को ईनाम
जीतेगा भी वही जिसमें कि द़म है
प्यारे, यह चुनाव काम मौसम है।
धुंआदार प्रचार, लगाये जा रहे नारे
वोट मांग रहे हैं, नगर, घर और द्वारे
शाम को बोतल, नोटों की छमाछम है
प्यारे, यह चुनाव का मौसम है।
ज़नता जिताएगी, ज़नता हराएगी
वोटों की तादाद़ सरकार बनाएगी
जनतंत्र में भैया, यही तो आल़म है
प्यारे, यह चुनाव का मौसम है।
यह देश नेताओं का, वे देश चलाते है
इनके पीछे जो हैं, वे इनको चलाते हैं
देश चलाने का बड़ा ही भरम है
प्यारे, यह चुनाव का मौसम है।
जीतने में है माहिर, जनतंत्र के मालिक
जीतने के बाद बन जाते तंत्र के मालिक
देश का पैसा कर जाते हज़म है
प्यारे, यह चुनाव का मौसम है।
चुनाव देश में नयी हलचल मचा देता है
भोली भाली जनता को नचा नचा देता है
भूखे, लाच़ारों की आंखे नम है
प्यारे, यह चुनाव का मौसम है।
चुनाव से जनता का मन बहल जाता है
चुनाव बाद उसका दिल द़हल जाता है
टैक्स की मार और कम इन्क़म है
भैया, यह चुनाव का मौसम है।
-डॉ रमेशचन्द्र,इंदौर (म.प्र.)
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