उम्र की ढलान पर चिंता की सलवटे,
नव पीढ़ी की चिंता में बदल रहे करवटें।
मिलावट का दौर है,
पार्टियों का शोर है,
कसरते तो कर रहे,
फिर क्यों कम उम्र में जीवन खो रहे।
शुद्ध खान पान का अभाव
अनियमितता का है भाव।
व्यस्तता का दौर है,
कमाने की एक होड़ है,
महंगाई पुरजोर है।
खुली हवा ना मिल रही
पर्यावरण अशुद्ध और कमजोर है।
पानी का अभाव है,
ये कौन जिम्मेदार है ?
असमय के मौसम से प्रकृति भी हैरान है।
अधिक गर्मी ठंड बेमौसम बारिश से सब परेशान है।
भागादौड़ी की जिंदगी
समय की है बंदगी,
लूटपाट का शोर है
बलात्कारियों का जोर है
बुजुर्ग भी हैरान है।
पर कौन जिम्मेदार है?
ये बिक रहा संसार है,
बदलाव की पुकार है,
संभलने की ललकार है
पर कोई दोषी नहीं है
तो क्यों बदल रहा संसार है।
युवा से जागरूकता का अरमान है,
सृष्टि का ये फरमान है
जागो युवा जागो,
तुमसे ही देश का मान है।
-संगीता तल्लेरा, उज्जैन
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