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धूप में भी बारिश हो रही है


गम के अंधेरे रहे भी तो कब तलक आखिर
इन दिनों खिली धूप में भी बारिश हो रही है।

जब भी जुबां पर अल्फाजों ने तान कोई नई छेड़ी
यादों के समंदर में भी अब लहरें उठ रही है ।

काश ! कोई समझ पाता हकीकत के इस फसाने को,
हथेली में भी नई लकीरें अब रोज बन रही है।

वक्त ने खुद को आज वक्त के हवाले कर रक्खा
भरोसे किसी के बिन पतवार भी नाव चल रही है ।।

-डॉ सुरेंद्र मीणा, नागदा (म.प्र.)

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