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फिर सुबह होगी


मैं हाथ में अखबार उठाए
पढ़ रहा था समाचार।
और महसूस कर रहा था
दुष्कर्म पीड़िता के मन की चुभन।
और लगा जैसे--
प्याज के छिलकों की तरह
छितर गया आज किसी का तन-मन।
तभी सुनाई पड़ा एक स्वर
"क्या सूर्यास्त हो गया?"
और मैं सहम कर रह गया।
कभी पड़ोस के घर में
गूंज उठी थी शहनाई ।
मनाई जा रही थी खुशियां
बंट रही थी मिठाई ।
साठ साल के बुजुर्ग को साथ मिला था
बीस साल की नन्ही गुडिया का।
आज आठ साल बाद खबर आई
गुड़िया का सहारा छीन लिया किस्मत ने।
तभी किसी ने पूछ लिया
"क्या सूर्यास्त हो गया??"
और मैं सहम कर रह गया।
एक संभ्रांत युवती
बस स्टैंड के प्रतीक्षालय में बैठी
मोबाइल से बातें कर रही थी किसी परिचित से।
मोबाइल से फूट रहे थे शब्द
तलाक!तलाक!!तलाक!!!
तभी पास खड़े बच्चे ने पूछा
"क्या सूर्यास्त हो गया???"
और मैं सहम कर रह गया।
मैने घबराकर बंद करली अपनी आँखें
और सोचने लगा--
है भगवान !अब क्या होगा ?
तभी अंतर्मन से उठी एक आवाज
घबरा क्यों रहे हो--
"हर बलिदान अपने पीछे एक चिंगारी छोड़ जाता है "
हर अंधेरी रात के बाद सवेरा होता है,
सवेरा होता है...

-राधेश्याम शर्मा, आँवली कलॉ, झालावाड़ (राजस्थान)

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