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बेटी के हाथों सभी, हो मंगल दस्तूर


घर आँगन की लाड़ली,खुशियाँ दे भरपूर।
बेटी  के  हाथों  सभी, हो मंगल  दस्तूर ।।

बेटी ही बनती  सदा, नव जीवन आधार ।
दो-दो घर के स्वप्न को,करती है साकार।।

आँगन की किलकारियॉ,पायल की झंकार ।
भूल सके  ना हम  कभी, बेटी का उपकार।।

बेटी  में   संवेदना,   और    बसा  है   भाव।
आँगन की तुलसी जिसे,घर से रहा लगाव ।।

बेटा है  घर का  शिखर ,बेटी है बुनियाद ।
जीवन  भर  करती  रहे ,नैन मूंद संवाद ।।

भाग्यहीन समझो उसे,या कमजोर नसीब।
आँगन में  बेटी  नहीं, वो  घर बड़ा गरीब।।

हाथ जोड़ कर मानती ,जीवन भर उपकार।
उस बेटी को किजिए,दिल से ज्यादा प्यार।।

खुशी-खुशी स्वीकार कर,दो-दो कुल की रीत।
आँसू  औ'  मुस्कान  को , बेटी  दे  संगीत।।

©संदीप सृजन, उज्जैन ( म.प्र.)
    मो. 9406649733


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