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दुःख मौन बन जाता है


नैनन की कोर से
हिय की हिलोर से
अंग के पोर-पोर से
तब दुःख मौन बन जाता है,
उस व्यथित मन का
ये घाव कभी भर न पाता है।

जब भाव विह्लल हो
तन-मन में
कोई आस -पास न हो
पीड़ित मन में
प्रीत के बोल न
हो अपनेपन में
तब दुःख मौन बन जाता है,
ये घाव कभी न भर पाता है।

हर बात पे हिस्सेदारी हो
क्यों तेरे-मेरे की बारी हो
क्यों सिर्फ एक की जिम्मेदारी हो
तब दुःख मौन बन जाता है,
ये घाव कभी न भर पाता है।

-सपना परिहार, नागदा (म.प्र.)

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