गौरीशंकर वैश्य विनम्र
यज्ञ उपयुक्त पर्यावरण के लिए।
शुद्धता दिव्य वातावरण के लिए।
वायु,जल, अन्न, फल हैं प्रदूषित हुए
आज अभिशप्त जीवन, मरण के लिए।
तन को जकड़े हैं गंभीर बीमारियाँ
तामसी वृत्ति आतुर वरण के लिए।
कट रहे वृक्ष, पक्षी भटकने लगे
अब न सुस्थान कोई शरण के लिए।
स्वार्थवश ही प्रकृति है विषैली हुई
फिर सजाओ धरा, जागरण के लिए।
ऊर्ध्व गति प्राप्ति हित, मन विमल कीजिए
शुभ मिले ऊर्जा, संचरण के लिए।
विश्व विजयी बने राष्ट्र, वंदन करें
आर्य जन व्यग्र हों, संवरण के लिए।
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