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बीना राय
आग में नफरतों के जल रहा सारा जहान है
है कौन अब मशीहा कहना बहुत है मुश्किल
अन्नदाता के नाम देकर मारा जा रहा किसान है
बेमतलब के बातों में गंवा कर के वक्त सारा
फिर वक्त का रोना यूं रो रहा वो नादान है
नियते-करम इंसाफ से भरी होती कोई हुकूमत
सदियों से इसी चाह में तड़प रहा हिंदुस्तान है
हम तुम उनकी बातों में यूं ही उलझे रहते हैं
अब तलक इसी की रोटी खा रहा वो शैतान है
जिसे मांगने के खातिर दैरो-हरम हो जाते
तुम्हें ही बख्शने को छीना उसे भगवान है
अपना अगर वो होता, रह पाता रूठकर क्या
सच्चाइयों से शायद अभी तक तू अंजान है
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