म.प्र. साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा नारदमुनि पुरस्कार से अलंकृत

चंपा का फूल

संजय वर्मा 'दृष्टि'

चंपा के फूल
जैसी प्रिये काया तुम्हारी
मन को आकर्षित कर देती
जब तुम खिल जाती हो चंपा की तरह।

तुम भोरे ,तितलिया के संग
जब भेजती हो सुगंध का सन्देश
वातावरण हो जाता है सुगंधित
और मै हो जाता हूँ मंत्र मुग्ध।

प्रिये जब तुम सँवारती हो
चंपा के फूलो से
अपना तन
जुड़े में ,माला में और आभूषण में
तो लगता स्वर्ग से कोई अप्सरा
उतरी हो धरा पर।

उपवन की सुन्दरता बढती
जब खिले हो चंपा के फूल
लगते हो जैसे धवल वस्त्र पर
लगे हो चन्दन की टीके ।

सोचता हूँ क्या
सुंदरता इसी को कहते
मै धीरे से बोल उठता हूँ -
प्रिये तुम चंपा का फूल हो।

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