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घिर गया सूरज, कुहासे में

डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'
घिर गया सूरज, कुहासे में, नज़र आता नहीं।
शून्य पारे में, असल का ताप, अब आता नहीं। 

लोग करते हैं प्रतीक्षा, कैंसर में मौत की,
मांगते हैं मरण, जीना है उन्हें, भाता नहीं।

दूध की किल्लत, बड़ों में, चाहे जितनी हो भले,
दुधमुँहा भूखा मगर, है रोटियाँ, खाता नहीं।

हर कोई कितना भी चाहे, हो उसे हासिल खुशी,
उस तरफ बैठे- बिठाये, मार्ग पर, जाता नहीं।

"जिंदगी है भूल का परिणाम", बेमानी समझ,
कम से कम मानव 'सहज' ही, जिंदगी पाता नहीं।

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