श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
हे जगदीश्वर, हे परमेश्वर! जग के तारन हार प्रभो।
हे गुण सागर,दया सिन्धु हे! भक्तन खेवन हार प्रभो।
यह मानव तन देकर तुमने, अपना दास बनाया
मैं केवट हूँ नाथ कृपा कर, अपने गले लगाया
विनत भाव से मैं नत मस्तक, होता शत-शत बार प्रभो।
हे जगदीश्वर, हे परमेश्वर! जग के तारन हार प्रभो ।।
दो पाटों के बीच सिमटती, अपनी दुनिया सारी
एक घाट से और दूसरे, तक जागीर हमारी
पार लगाने को लोगों को, थामी है पतवार प्रभो।
हे जगदीश्वर, हे परमेश्वर! जग के तारन हार प्रभो ।।
जो भी यात्री आता उसको, खुश हो पार लगाता हूँ
काम करूँ निष्ठा से अपना, राम नाम गुण गाता हूँ
मैं लोगों को पार लगाता, तुम जग खेवन हार प्रभो।
हे जगदीश्वर, हे परमेश्वर! जग के तारन हार प्रभो।।
जल की उठती-गिरती लहरों, पर मैं नाव चलाता हूँ
उठना-गिरना जीवन की क्रम, कभी नहीं घबड़ाता हूँ
तुम ही बोलो क्यों घबराए, जिसका पालन हार प्रभो।
हे रघुवर ! रघुवंश भास्कर,विनती बारम्बार प्रभो।।
हे जगदीश्वर,हे परमेश्वर! जग के तारन हार प्रभो।।
हे गुण सागर,दया सिन्धु हे! भक्तन खेवन हार प्रभो।
यह मानव तन देकर तुमने, अपना दास बनाया
मैं केवट हूँ नाथ कृपा कर, अपने गले लगाया
विनत भाव से मैं नत मस्तक, होता शत-शत बार प्रभो।
हे जगदीश्वर, हे परमेश्वर! जग के तारन हार प्रभो ।।
दो पाटों के बीच सिमटती, अपनी दुनिया सारी
एक घाट से और दूसरे, तक जागीर हमारी
पार लगाने को लोगों को, थामी है पतवार प्रभो।
हे जगदीश्वर, हे परमेश्वर! जग के तारन हार प्रभो ।।
जो भी यात्री आता उसको, खुश हो पार लगाता हूँ
काम करूँ निष्ठा से अपना, राम नाम गुण गाता हूँ
मैं लोगों को पार लगाता, तुम जग खेवन हार प्रभो।
हे जगदीश्वर, हे परमेश्वर! जग के तारन हार प्रभो।।
जल की उठती-गिरती लहरों, पर मैं नाव चलाता हूँ
उठना-गिरना जीवन की क्रम, कभी नहीं घबड़ाता हूँ
तुम ही बोलो क्यों घबराए, जिसका पालन हार प्रभो।
हे रघुवर ! रघुवंश भास्कर,विनती बारम्बार प्रभो।।
हे जगदीश्वर,हे परमेश्वर! जग के तारन हार प्रभो।।
0 टिप्पणियाँ