संदीप सृजन |
किस तरह निकलेगा कोई हल मियां
हैं सियासत की यही इक ख़ासियत
दिन नया आया ,न आया कल मियां
बारिशें हैं बस दिलासों की यहॉ
ख़ाब से लगते सियासी पल मियां
खेतिहर का है हुकूमत से कलह
राह निकली है न कोई हल मियां
पूछिए मत किस तरह से जी रहे
रोज होते हैं यहॉ पर छल मियां
ऑख दिखलाते सियासतदानों को
आज जन्में दो टके के दल मियां
शायरी का फ़न फजूल न कर सृजन
चल यहाँ से अब कहीं तू चल मियां
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