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डॉ.रघुनाथ मिश्र सहज के तीन मुक्तक

डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज'

सर्दी से सर्द, कुहासे का खंजर।
बड़ी सावधानी, ज़ोखिम का मंजर।
गरीबी -अमीरी, व छोटे -बड़े का,
दिखता ऐसे में, बड़ा सारा अंतर।।
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ध्यान धरें अब, ध्यान धरें हम।
ज्ञान भरें अब , 
ज्ञान भरें हम।
शान रहे अब ,शान्त रहे जग,
'सहज' रहें अब, पीर हरें हम।।
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अखबार में दिखता न, समाचार आज कल।
संसार में दिखता न, सदाचार आज कल।
न्यूज़ हर होती नहीं है, व्यूज से सज्जित,
खबरें तो बढ़ाती हैं, अनाचार आज कल।।

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