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नवल वर्ष के आँगन पर


सुषमा दीक्षित शुक्ला
दो हजार इक्कीस तुम आओ,
जग में नूतन खुशियां लाकर ।

परम पिता की सदा दुआ हो,
उनकी सुंदर बगिया पर ।

दो खुशियों की शुभ सौगातें ,
सुख के सुंदर दीप जलाकर ।

दो हजार इक्कीस तुम आओ ,
जग में नूतन खुशियां लाकर ।

खिलते रहें गुलाब सदा ही ,
साँसों की अगणित शाखों पर ।

सुंदर अभिलाषाएं पूरी हों ,
नित नवल वर्ष की राहों पर ।

आँधी बनकर ख़ुशबू बिखरे ,
भारत माता के दामन पर ।

सपनों की नइया तट पहुँचे ,
नित नवल वर्ष के आँगन पर ।

दो हजार इक्कीस तुम आओ ,
जग में नूतन खुशियां लाकर ।

परमपिता की सदा दुआ हो ,
उनकी सुंदर बगिया पर ।



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