✍️राजेन्द्र श्रीवास्तव
जब मानव असभ्य और जंगली था,तब लोगों को सभ्य और नैतिक बनाने के लिए भय और लालच के सहारे परिवार और समाज में ढाला।कहा गया कि जो लोग अनेक प्रकार के पुण्य और सतकर्म करके मरते हैं,उनकी आत्माएँ स्वर्ग लोक में निवास करती हैं।प्रायः सभी धर्मों में स्वर्ग की कल्पना एक ख़ूबसूरत उद्यान के रूप में मिलती है,जहाँ ऐशो आराम की सभी चीज़ें उपलब्ध होती हैं।वहाँ कलकल करते झरने होते हैं,किनारे मनमोहक़ फूल होते हैं।चारोंओर हरे भरे पेड़ स्वादिष्ट रसिले फलों से लदे होते हैं,दूध घी, शहद की नदियाँ होती हैं,और अप्सराएँ नृत्य करती रहती हैं। उस ज़माने में इससे बड़ी कल्पना नहीं कर पाए।आज हम जो सुख सुविधाएँ भोग रहे वो पुराने ज़माने के राजे महाराजाओं के पास भी नहीं थी।ज़्यादा नहीं 200 साल पहले का आदमी अभी की दुनिया को देखेगा तो उसे विश्वास ही नहीं होगा कि वो इसी दुनिया में रहता था।तब ना ट्रेन थी,ना हवाई जहाज़,ना बिजली ना फ़ोन।और पिछले 50 वर्षों में जो सुविधाएँ मिली वो तो 100 साल पहले वाला आदमी भी विश्वास नहीं कर सकता कि दुनिया में कहीं भी कुछ हो रहा हो,वो घर बैठे देख सकता है।दुनिया में कहीं भी कोई आदमी हो उससे सामने देख कर बात कर। सकता है।कोई भी फ़ोटो और संदेश पल भर में कहीं भी भेज सकता है।ठंडा पानी गरम पानी,ठंडी हवा,गरम हवा एक अंगुली की पहुँच पर है,और आदमी चाँद पर भी जा सकता है।तो क्या हम पहले ही स्वर्ग का सुख नहीं भोग रहे।जितने खाने पीने की चीज़ें और मनोरंजन के साधन अभी उपलब्ध हैं,वो तो स्वर्ग की कल्पना करने वाले सोच भी नहीं सके थे। स्वर्ग की कल्पना करने वालों के अनुसार स्वर्ग प्राप्ति के लिए अनिवार्य है मृत्यु।भौतिक देह की मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति की बात बेमानी है,क्योंकि इस शरीर के नष्ट हो जाने के बाद स्वर्ग की अनुभूति को जानने का कोई उपाय नहीं है। वास्तव में में में नकारात्मक विचारों से मुक्ति ही स्वर्ग का सोपान है इसी जीवन में स्वर्ग की प्राप्ति जीवन में अच्छे कर्म करने से प्राप्त में की शांति से है।
*भिलाई नगर,दुर्ग
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