✍️कैलाश सोनी सार्थक
शिल्प,कला,रस,सुरम्य,सुषमा
से जीवन रसवंत करो
नीरस नीरव सम्प्रेषण को,
गुप्त निराला पंत करो
पीकर रोज हलाहल दुख का,
सुख का सोम लुटा पाओ
आभा,विमल,शुभ्र दिनकर सी,
कंचन छटा उड़ा जाओ
पुण्य,दया,का ध्येय कथन में,
मन पावन सामंत करो
कनक,रजत,चमके रतनों सी,
प्रखर योग्यता चाकर हो
जीभ,शुद्ध हो,शब्द मृदुल हो,
भाषा भाव प्रभाकर हो
मन भाये उत्कृष्ट कामना,
जीवन यों यशवंत करो
त्याग,प्रेम,अनुराग बिना कब,
भक्ति मन को छू जाए
अनुपमता,साहस,उमंग ही,
राम सिया के मन भाए
प्रवर भाव रख साथ निभाते,
देखे वो हनुमंत करो
कर्मशीलता,हो बुलंद बस,
देव तुल्य मानक रखना
रीति,नियम,कुल,आन,मान,
मर्यादा का ही रस चखना
पूजे कर्म आपके दुनिया,
तन मन को भगवंत करो
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