✍️देवेन्द्र कुमार मिश्रा
जब तक जियो ऐसे जियों
देह मर जाये, मन मर जाये
किन्तु न मरे आँख का पानी ।
बेवक्त न मरे जवानी
आँख का पानी मरा
तो जगत को मार डाला समझो
कैसे देख सकते हो
किसी मरते, तडफ़ ते आदमी को
कैसे मुँह फेर कर निकल सकते हो
अबला की लुटती लाज पर
कैसे अनसुना कर सकते हो
किसी की करूण पुकार पर
कैसे होते देख सकते हो
अन्याय, अत्याचार
और देख कर अनदेखा कर रहे हो
तो समझो मर चुका है आँख का पानी
फि र क्या जीवन और क्या जवानी
मृत ही हो तुम अगर मौत से पहले
मर जाये आँख का पानी ।
*छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
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