✍️सोनल पंजवानी
वक़्त की तरकश से कोई तीर न चलने पाए
मेरी खुशियों का समा ऐसे न ढलने पाए
वक़्त की शाख़ से अब लम्हे न लुटने पाए
मेरे हाथों से तेरा दामन न अब छुटने पाए
कितनी उम्मीद से माँगी है ये रौशनी की मुराद
इन आँधियों से चरागात न बुझने पाए
वक़्त ने डाल दिया पल पल का हिसाब इस चेहरे पर
मेरी आँखों से वो मंज़रे जज़्बात न खोने पाए
किसी से दिल क्या लगा बैठे ये दस्तूर हो गया
दिल किसी सूरत में अब आबाद न होने पाए
अपनी आँखों के चराग़ों को जो रौशन कर दे
वो तरन्नुम वो नज़ारे न कहीं खोने पाए।
*निपानिया, इंदौर
अपने विचार/रचना आप भी हमें मेल कर सकते है- shabdpravah.ujjain@gmail.com पर।
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब हमारे वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.com
यूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw
0 टिप्पणियाँ