✍️आशीष तिवारी निर्मल
मेरे साथ मेरी जिम्मेदारियां सफर पे है,
ध्यान मेरा माता - पिता और घर पे है।
हो लाख किताबी ज्ञान मगर याद रहे ये
दुनिया तो चलती सिर्फ ढाई अक्षर पे है।
बेशक अनदेखा कर देते अच्छी बातों को,
आनंद लेते लोग यहाँ हर बुरी खबर पे है।
सदियों तक याद रखे जाते वो लोग यहाँ,
कर्तव्य निभाते जो अपनी हर उमर पे है।
मजलूमों का खून पिएँ खटमल की तरह,
अब नजर किसानों की अस्थि पंजर पे है।
कुछ तो चाल तेरी बदचलन है सियासत,
यूँ ही नहीं यह हाय तौबा हर अधर पे है।
मैं कलमकार हूँ ना किसी से दोस्ती ना बैर,
आस और विश्वास माँ शारदा के दर पे है।
*लालगांव रीवा मध्यप्रदेश
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