✍️मीरा सिंह 'मीरा'
ताउम्र इंसान
दौड़ते भागते रहता है
दौलत की फिक्र में
सोते जागते रहता है
चैन की सांस
एकपल भी नहीं लेता
दिनरात खटते रहता है
पाई पाई जोड़ता है
कई मकानें
खड़ी करता है पर
हासिल क्या होता है?
एक मनहूस झोंका
आती है और
ले जाती इंसान को
जीवन के उस
आखिरी पड़ाव पर
जहां दौलत
काम नहीं आती है
रिश्ते नाते भी
काम नहीं आते हैं
सोने-चांदी जैसी
सुनहरी यादें
हाथों से छिटक
दूर फिसल जाती हैं
अपनों के बीच इंसान
बेबस खड़ा रहता है
हर अपनें का चेहरा
अनजान सा लगता है
सच यह जिंदगी भी
बहुत अजीब होती है
आती जाती सांसे भी
महसूस नहीं होती हैं
सोच समझ के परिंदे
जाने कहां उड़ जाते हैं
आवाज देने पर भी
वापस नहीं आते हैं
दिल के आसपास
कोई नहीं होता है
आखिरी सफर का राही
अपनों के भीड़ में
तनहा खड़ा होता है
टुकुर टुकुर सबका
बस मुंह ताकता है
दिल में क्या दर्द है
कह नहीं पाता है
लंबी उम्र की
दुआ मांगने वाले हाथ
मांगने लगते हैं यूं ही
रब से मुक्ति की दुआ
बुझ जाता है
एक रोशन चराग
नजर आता है हर सूं
सिर्फ गम का धुआँ
*डुमरांव, जिला- बक्सर,बिहार
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