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एक नज़र शिक्षकों के जीवन पर



✍️राखी सरोज

 

शिक्षा हम सभी की मांग से ज्यादा जरूरत है। आपातकाल की स्थिति झेल रहें हमारे देश में शिक्षा का तरीका बदल गया। जिस देश में आज तक बहुत से लोगों ने इंटरनेट और फोन का प्रयोग नहीं किया उनके घर में भी टेक्नोलॉजी ने अपने पैर पसार दिए। बस इस लिए की शिक्षा को बनाए रखा जा सकें। हमारे देश में बच्चों के माता-पिता की समस्या समझ लोगों ने मांग की स्कूलों द्वारा छात्रों की फीस माफ़ी की। हमारे देश में कई निजी तौर से चल रहे स्कूलों ने बच्चों की फीस में माफी या छूट के प्रस्ताव को स्वीकार किया, जिसके चलते छात्रों के अभिभावकों की जिम्मेदारी तो कम हुई।  किंतु उन शिक्षकों की परेशानियां बढ़ गई है जो इस आपातकाल की स्थिति में हजारों समस्याओं के बाद भी शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ ही साथ बच्चों के जीवन में बनाएं रखने का प्रयास कर रही है।

 

लॉक डाउन में हजारों समस्याओं से गुजर कर भी अपने देश के भविष्य को बचाने के लिए हमारे छात्र इस आपदा की समस्या में लड़ रहे हैं। शिक्षक अपने निजी जीवन के साथ ही साथ अपने कर्तव्य को निभाने की कोशिश करते हुए छात्रों को शिक्षित कर रहें हैं। हमारे देश में छात्रों की समस्या को समझने का प्रयास किया जा रहा है। किंतु इसी देश में इन छात्रों को‌ तैयार करने वाले शिक्षकों की समस्या को समझने वाला कोई नहीं है।  

 

हमारे देश में हर रोज बेरोजगार होते शिक्षकों की बढ़ती संख्या हमें बता रहीं हैं कि हमारे यहां छात्रों की संख्या तों बढ़ रही है। किंतु हमारे देश में शिक्षकों की जरूरत कम पड़ रहीं हैं। निजी स्कूल मजबूरी या अपने फायदे को सोचते हुए शिक्षकों को नौकरी से बाहर निकाल रहें हैं। शिक्षकों की कमाई में की जाने वाली कटौती उनके जीवन निर्वाह को मुश्किल बना रहीं हैं। उनके घर-परिवार की समस्या को दिनों दिन बढ़ाए जा रहा है। अपने घर का किराया ना दें पाने की समस्या के चलते कई शिक्षकों को अपने घर की छत तक खोने का खतरा मंडरा रहा है। महीनों से नौकरी ना होने के कारण शिक्षकों के खानें पीने के लाले पड़ रहे। शिक्षकों को उधार ले कर अपना घर चलाना पड़ रहा है। हम सभी छात्रों की परवाह कर रहे हैं लेकिन उन शिक्षकों की और उनको बच्चों की जरूरत नहीं समझ रहें हैं। हमारे यहां भ्रष्टाचार और घोटालों ने शिक्षक बनने का सपना देखने वाले लाखों छात्रों को जीवन में कभी अदालतों तो‌ कभी धरनों पर बैठ अपने अधिकार और सत्य की जीत के लिए संघर्ष करते रहते हैं। 

 

हमारे यहां शिक्षकों को माता-पिता से बढ़ा दर्जा दिया जाता है। किन्तु जब इन्हीं शिक्षकों को अपने अधिकार और जीवन के लिए संघर्ष करते नजर आते हैं। हमें आवश्यकता है अपने यहां निष्पक्ष चुनाव करने की। जिसकी दी शिक्षा हमें दुनिया में सही ग़लत समझने का ज्ञान देती है, वहीं आज हजारों समस्याओं से गुजर रहे हैं। जिसमें से बड़ी समस्या बेरोजगारी है। हमारी सरकारें, गैरसरकारी संगठन, या अन्य मददगार हो किसी का ध्यान हमारे शिक्षकों की ओर नहीं है। शिक्षकों की समस्या ना हम सुन्ना चाहते हैं और ना समझना। हम तो‌ बस चाहते हैं कि वह अपना कर्तव्य समझें और हर हाल में अपना कर्तव्य निभाएं। हमें जरूर है उनकी समस्याओं को समझ कर हल‌ निकालने का प्रयास करने का। 




*बदरपुर (नई दिल्ली)



 


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