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दहेज मुक्त विवाह


✍️बीना रॉय

चलो ख़त्म मिलकर दहेज का रिवाज हम करें

अंत से इस कुप्रथा के सुखी समाज हम करें

माँ के गहने गिरवी रखे जाते जिसे वो रखती थी कभी सहेज कर

बिक जाता जमीन पिता का करने को खर्चा इस दहेज पर

डूब जाते हैं कर्ज मे भाई अपने 

बहन को ससुराल भेजकर

इस अपयशी रिवाज के विरोध मे कुछ नेक काज हम करें

अंत से इस कुप्रथा के सुखी समाज हम करें

 

वर हो चाहे जैसा पर वधू हो सुंदर और सुसंस्कृत

मांगे बढती जाती हैं लोभ कर लेते  वो अनियंत्रित

भूलकर रिश्तों की मधुरता जो ध्यान कर लेते हैं धन पर केंद्रित

ऐसे लोभियों को कन्या सौंप कर कैसे नाज़ हम करें

अंत से इस कुप्रथा के सुखी समाज हम करें

 

जो बेटी बाबुल के आंगन मे चिड़ियो सी चहचहाती है

वही ताने से दहेज के अक्सर ससुराल मे घुट जाती है

कहीं-कहीं तो धन की लोलुपता मे वो जिंदा जला दि जाती है

ऐसी वेदनाओं के जड़ को काट कर नई आग़ाज़ हम करें

अंत से इस कुप्रथा के सुखी समाज हम करें

 


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