✍️हमीद कानपुरी
बा ख़बर आदमी।
बा असर आदमी।
बे असर ही रहे,
बे ख़बर आदमी।
लड़ रहा रात दिन,
इक समर आदमी।
कुछ नहीं कर सके,
है लचर आदमी।
चाहता हर कोई,
खुशनज़र आदमी।
आदमी का बने,
हम सफर आदमी।
*कानपुर
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