✍️सुषमा दीक्षित शुक्ला
वो उजड़ा चमन याद आता रहा है।
सुहाना समा दिल जलाता रहा है ।
सुलगती शमा सा फ़क़त दिल ये मेरा।
पिघलता पिघलता जलाता रहा है ।
ये घायल सी साँसे ये बेचैन आँखें ।
हर इक रोज मुझको चुकाता रहा है ।
ये रूहों की चादर में जख्मो के मोती ।
जनाज़ा हमारा सजाता रहा है ।
राहे मोह्हबत को माना इबादत ।
ये रस्मे वफ़ा दिल निभाता रहा है ।
कभी तो मिलेगा वो हमरूह मेरा ।
यही दिल दिलासा दिलाता रहा है ।
फ़ना होके भी तेरा आवाज़ देना ।
अश्कों मे, सुष, को डुबाता रहा है ।
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