गूगल मीट पर दिनांक 10 अगस्त को विश्व मैत्री मंच के सभी समूह दिल्ली प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा अंतर्राष्ट्रीय समूह से सावन के गीतों पर आधारित लगभग 30 प्रतिभागियों ने प्रतिभागिता दर्ज की । कार्यक्रम की अध्यक्षता मुम्बई की वरिष्ठ कवयित्री SNDT महिला महाविद्यालय मुम्बई की शोध निदेशक डॉ माधुरी छेड़ा ने की तथा मुख्य अतिथि रामायण केंद्र भोपाल के निदेशक डॉ राजेश श्रीवास्तव एवं विशिष्ट अतिथि पत्रकार वरिष्ठ लेखिका डॉ प्रमिला वर्मा की उपस्थिति में कवियों ने अपने गीत प्रस्तुत किए।
कार्यक्रम का आरंभ सुमिता केशवा ( मुम्बई) की गाई सरस्वती वंदना से हुआ । संस्था की अध्यक्ष वरिष्ठ लेखिका संतोष श्रीवास्तव ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि "आज हम आपके लिए सावन के गीतों को लेकर आए हैं। साहित्य में इस विषय पर बहुत लिखा गया है लेकिन आज के गीत अपनी अलग ही छटा बिखेरेंगे।" अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ माधुरी छेड़ा ने कहा संतोष श्रीवास्तव ने पुराने दिनों की याद ताज़ा कर दी. मुंबई में एक साथ कई साहित्यिक आयोजनों में एक साथ भागीदारी को माधुरी जी ने याद किया। तथा सभी गीतकारों को ऐसे ही आगामी आयोजनों की शुभकामनाएं दीं. मुख्य अतिथि डाॅ राजेश श्रीवास्तव जी ने कहा कि गीत लिखने का मुझे कोई अनुभव नही किंतु रामायण से मेरी लगन उसकी काव्यात्मकता मुझे सदैव प्रभावित करती है, रामायण समग्र रूप से गीत काव्य ही है, करूणा, वात्सल्य, प्रेम, मनोहार, वियोग, संयोग व श्रृंगार के गीतों को आज सुन कर आत्म विभोर हुआ. राजेश जी ने सभी प्रतिभागियों से राम चरित्र पर भी सृजन करने की प्रेरणा दी, सभी गीतकारों को कोटिशः बधाई दी. बहुत दिनों बाद सावन के गीतों की गोष्ठी सुनने का अवसर मिला. मल्हार, कजली सुने मानों कई बरस हुए. गीतों का आरंभ साधना वैद्य के मल्हार राग में गाये/झूला तो पड़ गये अम्बुआ की डार पे जी /ए जी कोई राधा को, गोपाला बिन राधा को /झुलावै झूला कौन ........। से हुआ
प्रमिला झरबड़े ने
सावन बीता सूखा-सूखा,झूले नही पड़े
हाँ अरमां रहे धरे
किरण लता वैद्य ने
सावन आया सावन, मनभावन आया मौसम मेघों से बूंदे गिरें रिमझिम,
बूंदन की पैंजन बाजे छम छम
जया केतकी ने
कितनी भी अनमनी हो बरसाती शाम, हम तुम निपटा लेते मनमाफिक काम
महिमा वर्मा ने
कुहके है कोयल काली वो तो घूमे है डाली डाली आई सावन ऋतु मतवाली हो रामा
राजीव खरे ने
सावन की मद भरी फुहारें,
न प्यास बुझा पाईं।
मेघा के संग,कजरी की धुन,
प्रिय तुमने बिसराई
चरणजीत सिंह कुकरेजा ने
नैंन बाँवरे तकें झरोखे,कर के हारसिंगार।
कच्ची पक्की पींगो के मन,फूटे कई अनार।
ये है सावन का उपहार।
मनोरमा पंत ने
सावन लहराया
चल सखी ,हिडालें पर
हम भी पींगे भरे ,
बाहों में भर ले आसमान
फिर होले से धरा छूँ ले
शेफालिका श्रीवास्तव ने
मेघा गरजे बूँदिया बरसे
इंद्रधनुष को रही निहार
अंकुर फूटे मनवा नाचे
पेड़ों में आ गयी बहार
सुमीता केशवा ने
सावन ने जुल्फें रख दी अपनी खोल खोलकर
धरती को पिलाया महुआ जो घोल घोलकर
अभिसार से धरती के लाल गाल हो गए
सावन में हम अबीर और गुलाल हो गए
सुनीता माहेश्वरी ने
रिमझिम बरसें नन्हीं बूँदें, मन मगन गीत मृदु गाता है |
झूला झूलें सखियाँ हिल मिल, यह सावन मुझे रिझाता है |
अमर त्रिपाठी ने
सावन गांवो में, सावन की रौनक गांवो में
झूले की खातिर लड़ जाए, बहना गांवो में
मधु सक्सेना ने
फिर जोरों से किसे पुकारा बादल ने
उठ कर ली अंगड़ाई सुनहरे आँचल ने
ढूंढ रहा था चाँद ,चांदनी को अपनी
अम्बर से धरती जाल बिछाया काजल ने
आरती कुमारी ने
मेरे साजन सावन बीता जाए
पगली बिरहन पल पल नीर बहाए
विद्या सिंह ने
गाए बदरिया मल्हार सखी री सावन आयो
डाल डाल पर झूले पड़े हैं
कजरी की छाई बहार सखी री सावन आयो
मनोज देशमुख ने
बादल बन ठनकर आया।
सावन मेरे मन को भाया।
बरसे बारिश रिमझिम देखो
प्रकृति का यौवन भरमाया।
दिनेश गौतम ने
गरज रहे हैं, श्यामल से घन
फिर से सावन आया
मोर नाचते पंख पसारे
मुग्ध मोरनी तकती,
रेखा कक्कड़ ने
मेहा बरसो धरती के आंगन
सोंधी सुगंध महका सावन। प्रमुदित जीव हुआ मनभावन छाया हर्ष आज हर आनन।
अर्चना पण्ड्या ने
वो अपने गांव की मिट्टी , वो सावन में पडें झूले।
मै जितना चाहता हूँ , भूलना पर वो नही भूलें।
सुषमा सिंह ने
जब संग-संग बैठे हम और पड़ने लगीं बौछारें।
बाहर-बाहर तो भीगे ही,भीतर-भीतर से भी भीगे!
रूपेंद्र राज ने अपनी ग़ज़ल में कहा कि
आया है झूम झूम के सावन का काफिला
मुश्किल हुआ है मेरा सफ़र तुमको इससे क्या।
लता तेजेश्वर रेणुका ने
सावन का महीना आया, सावन का महीना रे
खिली-खिली, झीनी-झीनी धरती भी सुहानी रे
सावन का महीना आया सावन का महीना है गीतों घोषणा कर सावन की ऋतु मंच पर साकार कर दी। संचालन रूपेंद्र राज ने आभार सरस दरबारी ने तथा समापन राज बोहरे ने किया कार्यक्रम में विभिन्न शहरों से लगभग 40 लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज की।
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