Subscribe Us

तुम मानो या न मानो



✍️डा•रघुनाथ मिश्र 'सहज'


तुम मानो या न मानो मैं तो,दिल की बात सुनाता हूँ।
इसीलिये सारी दुनिया में ,मैं साफ हृदय कहलाता हूँ।

दोस्त मिरे औ घर वाले सब,मन ही मन में हरसाते हैं,
जब-जब भी मैं स्वार्थ मुक्त हो,कष्टों में भी मुस्काता हूँ।

हाड़-मास का पुतला मैं भी,मानव धर्म निभाने को मैं,
पूरी कोशिश करके आखिर,खुद को इस तरह बनाता हूँ।

चाहे कुछ भी कर ले कोई,पर इतनी समझ जरुरी है,
जस करनी तस ही भरनी है बस,यही सत्य समझाता हूँ।

'सहज' कहूँ मैं बात अनुभवों की जो, यह लाख टके की है,
असली मानव हो जावो सच है, ये नहीं भरमाता हूँ"।


*कोटा (राजस्थान)


 


अपने विचार/रचना आप भी हमें मेल कर सकते है- shabdpravah.ujjain@gmail.com पर।


साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल  शाश्वत सृजन पर देखेhttp://shashwatsrijan.com


यूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ