✍️रमाकान्त चौधरी
अंधियारा निश्चित छटेगा, गर शमा जल जाए तो।
मंजिल खुद आकर मिलेगी,गर कदम उठ जाए तो।
पेड़ तूफानों में वो हरगिज़ ही टूटेगा नही,
वक़्त को पहचान कर ,वो अगर झुक जाए तो।
कुछ भी नामुमकिन नही है इस जहाँ में दोस्तो,
टूट जाते हैं किनारे , गर नदी उफ़नाये तो।
हर परिंदे में है ताक़त आसमां छू लेने की,
छोड़ कर दुश्वारियां , गर पंख वो फैलाए तो।
हम हैं तो मुमकिन है ये राहत उसे मिल जाएगी,
बस अकेले बैठ कर मेरी ग़ज़ल वो गाए तो।
*झाऊपुर, लखीमपुर खीरी उप्र
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