✍️बलजीत सिंह बेनाम
सभी ज़ख्मों को हम बस यूँ ही ताज़ा छोड़ आए हैं
शजर को गाँव में हम साथी रोता छोड़ आए हैं
तेरे अश्कों के दरिया से बुझानी प्यास है तो ही
सभी नदियाँ समंदर ये ज़माना छोड़ आए हैं
अगर ड़रते क़ज़ा से इस क़दर तो ये बताओ क्यों
सदा कहते थे जीने की तमन्ना छोड़ आए हैं
कहाँ आता मज़ा टी.वी. में जो खेलों में आता है
तेरे कहने पे ही नट का तमाशा छोड़ आए हैं
कभी क्यों पढ़ नहीं पाए हमारी आँख में हमदम
सदा से प्यार का हम तो ख़ुलासा छोड़ आए हैं
*हाँसी,ज़िला हिसार(हरियाणा)
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