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पानी , पानी फेर न दे



✍️अशोक 'आनन'

 

रुई के फाहे से 

लगते बादल  -

आसमान के घावों पर ।

 

मेघ - गर्जना से

छलनी -

बदन  हुआ है ।

घाव से 

लहू - पीव  -

सतत चुआ है ।

 

राम जाने  

कब चलेगा -  

आसमान अपने पांवों पर ।

 

नील गगन का 

बदन -

हुआ है काला ।

चीख सुन

होंठों का  -

खुल गया है ताला ।

 

फिर भी उनकी 

कृपा बरसी -

शहर हो या गांवों पर ।

 

दुनिया ने

इनको -  

जी भरकर कोसा ।

पीड़ा की पत्तल में 

खूब -

दर्द परोसा  ।

 

पानी  

पानी फेर न दे  -

मेघों के सद्भावों पर  ।

 

*मक्सी,जिला-शाजापुर ( म.प्र.)

 


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