✍️नवीन माथुर पंचोली
कोई आता न ही जाता जहाँ पर।
करेंगे हम भी क्या जाकर वहाँ पर।
बिछड़कर साथ जो उसके चला था,
हमारी है नज़र उस कारवाँ पर।
सुबह वो चाँद ख़ुद से पूछता है,
अकेला रह गया फिर आसमाँ पर।
वो बातें आप में देखी तो फिर से,
भरोसा आ गया उस दास्ताँ पर।
गुजरता है कभी जो दिल से होकर,
रहा करता है वो अपनी जुबाँ पर।
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