Subscribe Us

कपड़े धोने की मशीन



✍️शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'


धूप खिली, पटरी पर आए,
बंद पड़े सब काम।


मौसम की हल्की वर्षा से,
ऊभ-चूभ हैं गेह,
देह पसीने में डूबी है,
छूट गए हैं स्नेह,
लद लद करके नीचे टपके,
पके डाल पर आम।


लगीं प्रभाती गाने सुबहें,
कलरव गूँजे रोज,
छत पर थे जो खाते-पीते,
अंदर लौटे भोज,
भरती है सिंदूर माँग में,
स्वयं सुनहरी शाम।


कपड़े धोने की मशीन से,
कपड़े आए लौट,
जली अँगीठी और हाँड़ियाँ,
दूध रही हैं औट,
भीड़ भरी सड़कों पर उमड़े,
चौराहों के जाम।


सुघर पत्थरों पर सोए हैं,
रामराज्य के चित्र,
निर्माणों की हर मुद्रा में,
एक सुगंधित इत्र,
वाद विवाद जीतकर आए,
पुन: अयोध्या राम।


*मेरठ


 


अपने विचार/रचना आप भी हमें मेल कर सकते है- shabdpravah.ujjain@gmail.com पर।


साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल  शाश्वत सृजन पर देखेhttp://shashwatsrijan.com


यूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ