✍️प्रदीप ध्रुव भोपाली
जलाया शमा फिर बुझाया उसे क्यूं।
कदम खींचना था उठाया उसे क्यूं।
*
तुम्हारे ही बूते मिरी ज़िन्दगी थी,
निभाने से पहले मिटाया उसे क्यूं।
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मिरी हसरतों को दिया आब तुमने,
मिरी जां भी थे तुम भुलाया उसे क्यूं।
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चले थे तुम्हारे सहारे अभी तक,
कि पर्दा गिरा कर उठाया उसे क्यूं।
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अभी सोच लो वक्त जाने से पहले,
वो जो सिलसिला था बढ़ाया उसे क्यूं।
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रुलाना अगर था किसी को हंसाकर,
शरारत किया फिर हंसाया उसे क्यूं।
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बड़े चाव से "ध्रुव" किया ख़ैरमक़दम,
कि दिल तोड़कर आजमाया उसे क्यूं।
*भोपाल,मध्यप्रदेश
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